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इतिहास : जब पृथ्वी राज चौहान तराईन के मैदान में लड रहा था तब युद्ध क्षेत्र से थोड़ी दूरी पर जयचंद मुस्कुरा रहा था वह सोच रहा था कि उसने युद्ध से खुद को अलग कर के बहुत अच्छा किया , मरने दो पृथ्वीराज को , अब इसके (पृथ्वीराज के ) गर्व को टूटना होगा । जयचंद सोच रहा था वह सुरक्षित है । लेकिन ..
दो साल बाद जिस तलवार ने पृथ्वी राज को हराया था उसी तलवार ने जयचंद का सिर काट दिया था । अब जयचंद सोच कर पछता रहा था काश उस दिन पृथ्वी राज के साथ युद्ध में होता तो मेरे राज्य की मां बहने सुरक्षित होती ,राज्य सुरक्षित होता । तब तक देर हो चुकी थी।
कहानी का सार : अपनी बारी का इंतजार करो , वह तलवार दूसरों को काट कर , उसकी धार तुम्हारी तरफ भी आयेगी 🤔इंतजार करना । लेकिन तब तक देर हो चुकि होगी ।

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