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1568 ई. में अकबर के चित्तौड़ आक्रमण को दर्शाती ये पेंटिंग काफी बारीकी से बनाई गई है। इसमें किले में 3 अलग अलग स्थानों पर होने वाले जौहर के स्थानों से धुंआ उठता हुआ दिखाया गया है। द्वार के निकट वीर जयमल जी को कल्लाजी के कंधों पर बैठकर लड़ते हुए भी दिखाया गया है, इस दृश्य को आप पेंटिंग के बाई तरफ देख सकते हैं।
जगह जगह तोपों के हमले से ध्वस्त हुई दीवारें इस आक्रमण की भयावहता को दर्शाती हैं। इस महायुद्ध में 8000 राजपूत वीर और 1 हजार पठानों ने मेवाड़ की तरफ से लड़ते हुए बलिदान दिया। सैंकड़ों राजपूतानियों ने जौहर किया। (इन एक हजार पठानों ने इस घटना के कुछ वर्ष पहले मुगलों से पराजित होकर मेवाड़ में शरण ली थी)
मुगलों द्वारा 30 हजार नागरिकों का नरसंहार किया गया। इस युद्ध में मुगल सेना का जितना नुकसान हुआ उतना नुकसान अकबर के शासनकाल में और किसी युद्ध में नहीं हुआ। इस युद्ध में अकबर की कुल सेना 80 हजार थी, जिनमें से 30 हज़ार मुगल मारे गए।

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