मुझे काम करना, परिश्रम, दौड़ भाग करना।
सब अच्छा लगता है।
वह कानपुर हो, लखनऊ हो या जौनपुर हो।
लेकिन मुझे चाहिये कुछ पल ऐसे जिसमें मैं और प्रकृति का साथ हो।
क्या सोचना है,
क्या चिंतन करना है,
क्या विषय है ! यह पहले से निश्चित ना हो।
बैठे बैठे पलक भारी हो जाय।
निद्रा आने लगे।
यह एक सुखद आनंद और विश्राम है।
आज हल्की बरसात कि बूंदे पड़ रही है। मैं बाग में कुर्सी लगाकर बैठा हूँ।
मेरे लिये यह सुख अवर्णनीय है।
