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युवा पीढ़ी नारों और उत्तेजना में अपने मूल विचार से अलग हो जाती है।
उदाहरण एक है। लेकिन लागू तो सभी पर होता है।
कुछ राजपूत यह शेयर करते रहते है कि धर्म के चक्कर मे क्षत्रियत्व न चला जाय।
उनसे भी बड़े महापुरुष है जो लिखते है। इतने मुस्लिम राजपूत है।
श्रीमान, आप क्षत्रिय कैसे हो। मनमोहन सिंह ने बनाया है या मोदी ने बनाया है।
आपका क्षत्रिय कर्त्तव्य धर्म ने ही निर्धारित किया है। जिन्होंने इस कर्त्तव्य को निभाया वह आदरणीय है। लेकिन धर्म नही तो आप क्षत्रिय कैसे हो सकते है ?
वेदों ने पुरोहितों को निर्देश दिया कि राष्ट्र कि रक्षा करने वाले क्षत्रियों का राज्याभिषेक करें।
यदि वेद न हो तो कैसे क्षत्रिय रह सकते है। गीता में क्षत्रिय के कर्तव्यों को रेखांकित किया गया है। उसके अनुपालन से ही कोई क्षत्रिय हो सकता है।
धर्म ने क्षत्रिय बनाया है।
मीर कासिम कितने बड़े लड़ाका हो लेकिन क्षत्रिय नही हो सकते है। क्योंकि धर्म ने क्षत्रियों के कुछ जीवन मूल्य निर्धारित किये है।
जो धर्म ही त्याग दिया, वह क्षत्रिय कैसे हो सकता है। न ही रह सकता है।
किसी ने कभी अपना धर्म छोड़कर दूसरा मजहब या रिलीजन स्वीकार किया। उसी समय उसके जीवन मूल्य समाप्त हो गये। तो मुस्लिम राजपूत जैसे मूर्खतापूर्ण शब्द कहा से आ गये। राजपूत बनना ही है तो पहले धर्म स्वीकार करे।
धर्म ही नियामक है।
यह प्रलाप अज्ञानता है। मैं इस वर्ण का हूँ तो सर्वप्रथम वही है।।