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मणिकर्णिका घाट
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मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने का काम भगवान शंकर जी द्वारा किया गया, जिस कारण इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी द्वारा माता सती जी के पार्थिव,,शरीर का अग्नि संस्कार किया गया, जिस कारण इसे महाशमशान भी कहते हैं। आज भी अहर्निश यहाँ दाह संस्कार होते हैं। नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है। एक मान्यता के अनुसार स्वयं यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं , एवं मोक्ष प्रदान करते हैं । रंगभरी एकादशी (आमलकी) के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ जी के गौना होता है ऐसी मान्यता है इस दिन बाबा मसान होली खेलते हैं जो कि काशी में मणिकर्णिका एवं हरिश्चन्द्र धाट के अतिरिक्त पूरे विश्व में अन्यत्र और कहीं नहीं मनाया जाता है|इस घाट का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था यह सबसे प्रमुख घाट है यह घाट भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले में स्थित है इस घाट की सबसे प्रमुख विशेषता है कि यहां पर यह जाने वाले दाह संस्कार से मोक्ष की प्राप्ति होती है'"भगवान महाकाल"की प्रमुख नगरी काशी में, मृत्यु होने से स्वर्ग मिलना निश्चित है, इसी कारण यह हिंदू धर्म का एक धार्मिक एवं बहुत ही मान्यता प्राप्त दाह संस्कार स्थल है,इसके चलन में एक कथा है कहा जाता है कि! बहुत पुराने समय से आज तक यहां की चिता की ज्वाला अभी तक बुझी नहीं चाहे कितनी भी परेशानियां हो,फिर भी यहां पर एक के बाद एक चिता जलती रहती है"

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