हम हर समय बचाते रहे खुशियों के पल, हम बचते रहें अपनी खुशियों को साझा करने से।
हम अपने खिलखिलाने की तस्वीरें न साझा कर पाएं!
हम कभी जतला न पाए कि कोई कितना महत्वपूर्ण है हमारे जीवन में, उनके होने को सेलिब्रेट न कर पाए।
न हम कभी भाग सके उन लोगों से, जिनके होने पर घबराहट, घृणा और बेचैनी होती है।
न हम पूछ सके सवाल, किसी के अकारण गुस्से और भड़ास का।
न हम कर ही पाए विरोध, अपने ही लोगों पर हो रहे अत्याचारों का।
हम किसी के बुरा महसूस करवाने पर भी कह न सके...हम अपने लिये ही बने चुटकुलों पर हँसते रहे।
हम दुःख में भी भर भर आँसू रो न सके। हम अपने दुःख के कारणों को भी छुपाए.. सहेजे से भागते रहे।
न ही हम दे पाए अपने दुःखों के लिये किसी को इल्जाम, न ही दे पाए सो उलाहने किसी को हमारी तकलीफ़ में चुप हो जाने पर।
हम सुनते रहे हमेशा से अपने ऊपर लगे तमाम आरोप चुपचाप। हम मानते रहे मजबूत लोगों की बात।
हम सुनते रहे उलाहने और बद्दुआएं...हम देखते रहे अपने आत्मसम्मान को पल पल छिन्नभिन्न होते ।
हम चुप रहे हमेशा से अपनी गलती न होने पर भी और किसी दूसरे की गलती होने पर भी।
हम हारे हुए लोग हैं...जो कभी जीतने के लिये नहीं खेले। बल्कि हम तो इसलिये खेले, ताकि जी पाएं हम और हमारे अपने। हम तो अपनी मर्जी से हार भी न सके।
हम चंद लोग आज भी हैं।
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