इस चित्र में भगवान बाल मुकुन्द जिस बूढ़े व्यक्ति के साथ अलग अलग रूप में प्रेम पूर्वक विनोद (लीलाएँ) कर रहे है, काव्य रचना में डूबे इन महान कविवर भक्तराज का नाम है, पुनथनम नंबूदरीपाद महाभाग।
पुनथनम नंबूदरीपाद महाभाग, जो 1547-1640 ईसवी में केरल के मल्लापुरम ज़िले में हुए।
आप एक बहुत ही महान कवि थे जिनका भगवान गुरुवायुरप्पन (बाल गोपाल) में अनन्य प्रेम था। वात्सल्य भाव इतना अनन्य था कि, सूरदास जी की भांति, इनके लिए भगवान कभी बड़े हुए ही नही, सदैव बालक ही रहे। ये भगवान गुरुवायुरप्पन के मन्दिर जा कर भगवान को अपने कविता के पद सुना कर उन्हें रिझाते।
विवाह के पश्चात इनके कोई पुत्र न होने के कारण नंबूदरीपाद महाभाग का भगवान गुरुवायुरप्पन (बाल गोपाल) के प्रति वात्सल्य भाव और प्रगाढ़ हो गया। लम्बे समय के पश्चात भगवान की कृपा से इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
किन्तु यह ख़ुशी इनके भाग्य में अधिक समय तक नही टिक पाई। छ: माह पश्चात अन्नप्राशन के दिन इनके पुत्र की मृत्यु हो गई।
पुत्र वियोग का इन्हें ऐसा सदमा लगा कि इन्होंने स्वयं को घर मे बन्द कर गुरुवायुरप्पन (बाल गोपाल) के मन्दिर में जाना बन्द कर दिया और काव्य रचना आदि सभी कार्य बन्द कर दिए।
कविवर भक्त, पुत्र वियोग की असहनीय पीड़ा देख उन्हें इस पीड़ा से मुक्त करने के लिये भगवान गुरुवायुरप्पन (बाल गोपाल) स्वयं कुछ क्षण के लिए, एक बाल के रूप में घुटनों के बल चलते हुए उनकी गोद में आ कर लेट गए और उन्हें आलिंगन कर रोने लगे, वात्सल्य भाव उमड़ आया, भक्त राज भी भगवान से आलिंगन कर रुदन करने लगे। भगवान के स्पर्श से उनकी मानसिक और भौतिक पीड़ा दूर हुई और उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।
उन्होंने भगवान कृष्ण को अपना पुत्र माना।
अपनी रचना ज्ञानप्पन में वे लिखते हैं कि "जब मेरे हृदय में, मेरे आस पास, मेरी गोद में बाल कृष्ण नाच रहे हैं, तो अब मुझे अन्य किसी की क्या आवश्यकता।"
भगवान बाल मुकुन्द कभी भी कविवर भक्त से एक-क्षण भी दूर नही होते थे। कभी उनकी गोद में, तो कभी कन्धे पर, सदैव नंबूदरीपाद के वात्सल्य भाव के अनुरूप उनके पुत्र की भान्ति उनसे प्रेम लीलाएं करते थे।
नंबूदरीपाद ने अपना शेष जीवन भागवत पढ़ने और मलयालम में प्रभु की महिमा को गाने में बिताया।
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में सदैव डूबे रहने वाले नंबूदरीपाद महाभाग ने निरन्तर भगवान स्मरण करते हुए नाम जप करने को मोक्ष का आसान साधन बताया है। अपनी रचना जन्नप्पन के प्रत्येक श्लोक के अंत में कृष्ण कृष्ण मुकुंद, जनार्दन के नाम जप पर उन्होंने जोर दिया गया।
