गंगू पहलवान , बलिदान दिवस....
(गंगादीन मेहतर.)
महान स्वतन्त्रता सेनानी और देशभक्त जिन्हें 8 सितम्बर1859 को बीच चौराहे फांसी पर लटका दिया गया।
कानपुर में जन्मे भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति संग्राम के जाबांज सिपाही गंगादीन सन 1857 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध सतीचौरा के करीब के क्षेत्र में बड़ी वीरता से लड़े थे. सन 1857 की लडा़ई में इन्होने लगभग 200 अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था. तत्पश्चात के वातावरण में इतनी बड़ी संख्या में अंग्रेज सिपाहियों की मौत के कारण अंग्रेजी सरकार बहुत भयभीत होकर सहम सी गई थी. अंग्रेजी सेना के अधिकारीयो ने गंगादीन को किसी भी हालत में गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया. अंग्रेज़ सेना के जवान गिरफ़्तारी हेतु बुरी तरह से इनके पीछे लग गए. वीर योद्धा गंगादीन बड़ी अंग्रेज सेना से घोड़े पर सवार होकर वीरता से लड़ते रहे. अंत में गिरफ्तार कर लिए गए.
जब वह पकड़े गए तो भयभीत अंगेजों ने घोड़ेे से बाँधकर पूरे कानपुर शहर में घुमाया।
कानपुर चुन्नीगंज के मुख्य चौराहे के बीच में स्थित एक पेड पर लटका कर सरेआम आम जनता के सामने 8 सितंबर सन 1859 ई. फाँसी दे दी गई.
" भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी कि गंध है, एक दिन यह मुल्क आजाद होगा."
ऐसा कहकर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को क्रान्ति का संदेश दिया और देश के लिए बलिदान हो गए.
कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गई है. वहां इनकी स्मृति में हर वर्ष मेला लगता है. दुर्भाग्यवश भारत के इतिहास में इस अदभुत क्रान्ति गाथा का कही भी नामो निशान नही है.
