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2008 में बीजिंग ओलंपिक के समय चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने देश में आमंत्रित नहीं किया। उन्होंने सीधे सोनिया गाँधी को परिवार समेत निमंत्रण भेजा।
इस निमंत्रण के बाद सोनिया गाँधी सपरिवार चीन पहुँच गई और वहाँ पर हू जिन्ताओ ने अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी शी जीनपिंग की मुलाक़ात राहुल गाँधी से कराई।
यात्रा के अगले दिन चाइना की कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ़ से शी जीनपिंग और भारत के कांग्रेस पार्टी की तरफ़ से राहुल गाँधी ने क्रमशः हू जिन्ताओ और सोनिया गाँधी की गवाही में एक ट्रीटी पर साइन किया जिसके अनुसार दोनों पार्टियों के ये उत्तराधिकारी नियमित रूप से एक दूसरे के संपर्क में रहेंगे और पार्टी टू पार्टी बेसिस पर एक दूसरे को सहायता देंगे।
कनाडा के लिबरल पार्टी के नेता और वर्तमान में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को चीनी राष्ट्रपति शी जीनपिंग ने 2018 में चीन में आमंत्रित किया और आमंत्रित करने से पूर्व ही चाइना एंबेसी ने जस्टिन के ट्रस्ट पियरे ट्रूडो फ़ाउंडेशन को साढ़े पाँच लाख डालर की सहायता भेज दी। इस यात्रा में जस्टिन ट्रूडो अपने परिवार के साथ पहुँचे और चीन ने कांग्रेस जैसा ही समझौता कनाडा के लेबर पार्टी के साथ कर लिया। साथ ही साथ चीन में जस्टिन के पिता पियरे ट्रूडो के कई जीवनियों का चीनी भाषा में अनुवाद कराया और अपने देश में बटवाया ताकि ट्रूडो परिवार को स्पेशल फील कराया जा सके। जस्टिन के भाई को इन किताबों के माध्यम से भारी पैसा चीन की तरफ़ से भेजा गया।
कनाडा का वर्तमान में पूरा नाटक इसी बात से शुरू हुआ कि कनाडा के चुनावों में चीन के भूमिका के सबूत मिले हैं। वहाँ की जनता और विपक्ष दोनों इस बात से बेहद नाराज़ हैं। तमाम सबूतों के बावजूद भी जस्टिन ट्रूडो कनाडा के चुनाव में चीन के भूमिका की जाँच नहीं करना चाहते। इस बात से ध्यान बटाने के लिये उन्होंने वहाँ की संसद में खड़े होकर बिना सबूत के भारत को अपने संप्रभुता का विरोधी बता दिया और एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत कर दी।
इन सबके बीच महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में भी चुनाव आ रहा है और चीन किसी भी क़ीमत पर नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदख़ल करना चाहता है। राहुल गांधी भारत में चीनी एजेंट जैसे ही हैं और लगातार संपर्क में भी हैं। वह लद्दाख के मामले पर वहीं बयान दे रहे हैं जो चीन दिलाना चाहता है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि चुनाव में राहुल गांधी को सहायता करने के लिए दिसंबर, जनवरी के आसपास अचानक चीन लद्दाख पर फिर से उसी तरह की स्थिति बना सकता है जैसी की डोकलॉम में हुआ था। इस समय राहुल गाँधी के एक एक चाल और भाषण का ध्यान रखना आवश्यक है, ख़ासकर उन विषयों पर जो वह राष्ट्रीय सुरक्षा पर बोलते हैं।