वाल्मीकि रामायण (भाग 114)
मकराक्ष की मृत्यु के बारे में सुनकर रावण बड़ा चिंतित हुआ। उसने अत्यंत क्रोधित होकर अब अपने पुत्र इन्द्रजीत को युद्ध के लिए जाने की आज्ञा दी। यह आज्ञा सुनकर इन्द्रजीत ने पिता को प्रणाम किया और युद्ध की तैयारी के लिए निकल पड़ा।
सबसे पहले उसने यज्ञ-भूमि में आकर हवन किया, अपना यज्ञ पूर्ण करके वह अपना धनुष-बाण लेकर चार घोड़ों वाले अपने रथ पर आरूढ़ हो गया और अदृश्य होकर युद्ध-भूमि में जा पहुँचा।
श्रीराम और लक्ष्मण को देखते ही उसने अपना रथ आकाश में रोका और स्वयं अदृश्य रहकर वह उन पर अपने पैने बाणों की वर्षा करने लगा। तब श्रीराम और लक्ष्मण ने भी अपने-अपने धनुषों पर बाण चढ़ाए और दिव्य अस्त्रों का उपयोग किया।