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एक मित्र विनोद विश्वकर्मा जी की असामयिक मृत्यु पर छलकी Dr. Ravishankar Singh की पीड़ा... कोई मदद न कर पाने का अफसोस....👇
पता नहीं किस अवसादग्रस्त व्यक्ति ने यह सिद्धांत बनाया था कि अपना दुख, पीड़ा, परिस्थिति किसी से नहीं कहनी है।
तब से हर व्यक्ति तीसमारखाँ बनने लगा।
जो किसी लायक नहीं है, वह भी दूसरे का परिहास करने लगा। यह दिखाने के लिये कि मैं तुमसे सुखी, बहादुर हूँ।
एक दिन मैंने अपने पिताजी का मड़हा शेयर किया था।
कुछ धनाढ्य लोग मुझसे पूछे... "इसी में आप रहते हैं ?"
हम कहे "जी, इसी में रहते हैं।"
यह सत्य भी है। रात्रि में थोड़ी देर के लिये आता हूँ। उसी में सोते हैं। यद्दपि अपना सुंदर सा घर है। जो समस्त भौतिक सुविधाओं से सम्पन्न है। फिर भी आत्मा का सम्बंध तो मड़हे से है।
हमारे जीवन जीने और आदर्श को दूसरा नहीं तय कर सकता है।
इसके लिये किसी के अप्रवुल की आवश्यकता नहीं है।
दरिद्रता हो या वैभव हो। ईश्वर का आशीर्वाद समझकर स्वीकार करना ही धार्मिक होना है।
अपनी पीड़ाओं को व्यक्त करिये। हजार परिहास करेंगे, तो एक अपना भी मिल सकता है, जिसकी सलाह, सहयोग जीवन बदल देगा।।

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