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हे धर्मात्मा भरत !
तुम्हारा प्रेम इतना महान है। कि उसके सामने सभी वचन छोटे है।
लेकिन पिताजी कि आज्ञा धर्म है वत्स।
मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग नही करना चाहिये।
अब तुम ही निर्णय करो। मैं वन में रहूँ या अयोध्या चलूं ।