🚩तापस बेष जनक सिय देखी। भयउ पेमु परितोषु बिसेषी॥
पुत्रि पबित्र किए कुल दोऊ। सुजस धवल जगु कह सबु कोऊ॥🚩
पिता हो तो जनक जैसा, जो अपनी पुत्री सीता को तपस्विनी के रूप में देखकर खुश होते हैं। उन्हें कोई शिकायत नहीं है राम से, कोई दुःख नहीं है कि महलों में पलने वाली बेटी जंगल के काँटों में नंगे पाँव चल रही है। जनक को तो इस बात का स्वाभिमान है कि उनकी बेटी ने दोनों कुल पवित्र कर दिए। वो कहते हैं कि तेरे निर्मल यश से सारा जगत् उज्ज्वल हो रहा है। धन्य है ऐसा पिता, जिसने सीता जैसी बेटी को जन्म दिया।
🚩जय हो जनक की🚩
🚩जय हो जनक नंदिनी की🚩