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सभी मानस प्रेमी भक्त जनों को सादर जय श्री राम 🚩🚩🙏🙏
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परसि राम पद पदुम परागा।।
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प्रभु के चरणस्पर्श से धरित्री (धरती, पृथ्वी) को धन्यता का बोध।
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🌹भूमिका-🌹
रामावतार से संपूर्ण सृष्टि सावधान हो गई है।जब ब्रह्म का अवतरण होता है तो जड़-चेतन संपूर्ण रूप से जाग्रत हो जाता है।जीवन-जगत् की दिशा और दशा बदल जाती है।सबमें एक अलौकिक चेतना का संचार होने लगता है।राम की रमणीयता और कमनीयता को निहारने अग-जग में नवीन उत्साह का संचार होने लगता है।
प्रकृति में सहज हीे चतुर्दिक विश्वास और उल्लास का आनंदपूर्ण वातावरण दृष्टिगत होने लगता है।चेतनशील प्राणी तो जाग्रत हो ही जाता है, जड़ भी इनके चरणों के दरस-परस से जीवंत और प्राणवंत हो जाता है।इस प्रकार संपूर्ण सृष्टि उस दिव्य चरण को निहारने मानो निर्निमेष पलक पाँवड़े विछाकर आकुल भाव से प्रतीक्षारत है।यह प्रसंग कुछ ऐसे ही असाधारण भावदशा को दर्शाता है।
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🌹प्रसंग-🌹
जिस पथ से श्रीराम वनगमन करते हैं, उस पथ को निहारकर स्वर्ग में रहनेवाले देवता भी उनके समीप बसनेवालों की सराहना करते हैं।जो इन तीनों को वनमार्ग में जाते हुए दर्शन करते हैं, जिन तालाबों और नदियों में स्नान करते हैं, देवसरोवर और देवनदियाँ भी उनकी बड़ाई करते हैं।
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जिस वृक्ष के नीचे प्रभु जा बैठते हैं, कल्पवृक्ष भी उसकी बड़ाई करते हैं।श्री रामचंद्रजी के चरण कमलों की रज का स्पर्श करके पृथ्वी अपना बड़ा सौभाग्य मानती है-
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परसि राम पद पदुम परागा।
मानति भूमि भूरि निज भागा।।
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रास्ते में बादल छाया करते हैं और देवता फूल बरसाते और सिहाते हैं।पर्वत, वन और पशु-पक्षियों को देखते हुए श्री रामजी रास्ते में चले जा रहे हैं।
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🌹व्याख्या-🌹
श्री राम की अवतरण लीला ऐसी है कि जन्म होते ही गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि उन्हें देखने के लिए एक माह तक सूर्य-रथ स्थिर हो गया-
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मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोई।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।।
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जिनके चरणस्पर्श से शिला पतिव्रता (अहल्या) हो गई।सेतु निर्माण के समय पत्थर अपनी गुरुता त्यागकर तैरने लगा-
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श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान।।
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उस सेतु को पार करते समय उनके चरण-दर्शन के लिए जलचर भी लालायित हो जाते हैं-
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देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा।
प्रगट भए सब जलचर बृंदा।।
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श्री रामजी के चित्रकूट आने पर वहाँ के वृक्ष लता आदि स्वतः फूलयुक्त और फलयुक्त हो गये-
🌹फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना।🌹
चित्रकूट के कोलभील आदि प्रभु सेे कहते हैं-
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धन्य भूमि बन पंथ पहारा।
जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा।।
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धन्य बिहग मृग काननचारी।
सफल जन्म भए तुम्हहि निहारी।।
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इसी प्रकार सेतु पार उतरने पर बानरों के खाने के लिए-
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सब तरु फरे राम हित लागी।
रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी।।

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समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

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