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•बिहार में आंगनबाड़ी सेविकाएं राजधानी पटना की सड़कों पर पुलिस के डंडे और वाटर कैनन की धार झेलती हुई अडिग हैं। महिला सशक्तिकरण का राग अलापने वाली यह राज्य सरकार उस सड़क पर अपनी पुलिस से यह कृत्य करा रही है जिस सड़क के किनारे विधान भवन स्थित है, जहां से राज्य के नीति नियम तय होते हैं।

•इस बार सत्ता में आने से पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की सामाजिक व्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही इन आंगनबाड़ी सेविकाओं को वादा किया था कि, उनकी सरकार बनी तो सेविकाओं का मानदेय बढ़ेगा।

•इन सेविकाओं को दुनिया भर की जिम्मेदारी दी गई है। ये कागजों पर ही केवल सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक की ड्यूटी कर रही हैं।वास्तविकता किसी बंधुआ मजदूरी से भी भयावह है।इनकी जिम्मेदारियों में शामिल है:-
अपने पोषक क्षेत्र में प्रतिदिन गृह भ्रमण,गर्भ में आए शिशु के खयाल रखने से लेकर जन्म व मृत्यु का लेखा जोखा,टीकाकरण, टी. एच. आर., अपने पोषक क्षेत्र में किशोरियों की देखभाल, चुनावों में जिम्मेदारी, जनगणना की जिम्मेदारी,इत्यादि।

•इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण स्कूल पूर्व शिक्षा की जिम्मेदारी है जो एक शिक्षित समाज की मजबूत नींव तैयार करता है।इसके अंतर्गत बच्चों को उनके घर से आंगनबाड़ी केंद्र लाना व सुरक्षित उन्हें वापस घर पहुंचाना,यदि वे केंद्र पर शौच आदि कर दें तो उनकी भी सफाई करना,उनके लिए तय रूटीन के तहत पोषण की व्यवस्था, इत्यादि।

•इन सब ने कोरोना के समय में रात - रात तक अपने पोषक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा किसी भी स्वास्थ्य आपदा के समय समाज में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहती है।

•कोई भी हतप्रभ हो जाएगा और यह सहज ही स्वीकार कर लेगा कि लगभग दिनभर के काम के लिए इन कर्मठ व लगनशील कार्यकर्ताओं को दिया जाने वाला साढ़े 5 हजार रूपए प्रति माह का वेतन इनके उन अथक परिश्रमों के बदले में किया गया एक गंभीर मजाक है।

•किसी भी जगह मजदूरी कर रहा व्यक्ति न्यूनतम 400 रूपए प्रतिदिन की मजदूरी पाता है, जबकि इन तमाम पहाड़ सी जिम्मेदारियों का वहन करने वाली सेविकाएं प्रतिदिन 198 रूपए प्राप्त करती हैं। कई राज्यों ने अपने यहां इन सेविकाओं की जिम्मेदारी को समझकर उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक से नवाजा है लेकिन बिहार राज्य की सरकार के तहत काम कर रहे अधिकारी वेतन वृद्धि की उचित मांग कर रही सेविकाओं को चयन मुक्त करने का नोटिस जारी कर रहे हैं।यह बंधुआ मजदूरी ही है कि काम करना है तो करो अन्यथा नौकरी छोड़ घर जाओ!

•राज्य सरकार को इस संबंध में मजबूत कदम उठाने ही होंगे क्योंकि ये सेविकाएं ग्रासरूट लेवल पर अंततः सरकार की योजनाओं को पहुंचाने का एकमात्र जरिया हैं। यदि इनकी नहीं सुनी गई तो यह सामाजिक न्याय की भी अवहेलना होगी!
सक्षम सेविकाओं से ही सशक्त बिहार निर्मित होगा!

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