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बहुत दिनों बाद कुछ ऐसा मिलता है जो सोंचने, चिंतन करने को मजबूर कर देता है, सारी बातों से भले न सहमत हो कोई भी किंतु चिंतन दृष्टि और दृष्टिकोण तो अवश्य ही कालजयी ही है।
आप भी मनन करें।
एक बार मुझको यह फटकार मिली थी( आप जानते ही है कहा से मिली होगी) कि तुलना मत किया करो।
लेकिन हम लोग पिताजी कि तरह आध्यात्मिक तो है नही। तो जो बहुधा पोस्ट पर टिप्पणी होती है। 'हमें कृष्ण नीति का पालन करना चाहिये।'
उसी को स्प्ष्ट करना है।
यह तो डिस्केलमर था।
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राम और कृष्ण तो एक ही है। बस काल का अंतर है। लेकिन जिस परिप्रेक्ष्य से टिप्पणी होती है। वही लिखना है।
मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम कि ऐसी आभा है। कि बहुत कुछ छिप जाता है।
भगवान राम कि रणनीति अधिक आक्रमक और व्यवहारिक है।
वह ऐसे योद्धा है। जो समुद्र पार करके युद्ध कर रहे है। एक सम्पूर्ण प्रजाति को जो सभ्यता के लिये खतरा थी। लगभग नष्ट कर दिया।
चित्रकूट , किष्किंधा होते हुये यह विजय यात्रा। लंका तक जाती है।
मारीच, सुबाहु, खरदूषण से होते हुये बाली, कुम्भकर्ण, रावण तक जाती है।
इन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है। वह युद्ध! अपनी भूमि पर नही कर रहे है। अत्याचारियों, अधर्मियों के राज्य में जाकर उनको परास्त करते है।
वह समुद्र पर सेतु बाँध देते है। लंका में जाकर युद्ध करते है।
इसमें कोई आश्चर्य नही कि वह इसके आगे भी गये हो। क्योंकि सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में उनके चिन्ह मिलते है।
सबसे ऐतिहासिक प्रमाणिक अश्वमेध यज्ञ उनके द्वारा ही किया जाता है।
कालांतर में लव - कुश और भरत के पुत्र तक्ष को पश्चिम में भेजते है। तीनो के नाम के शहर लाहौर, कुश, तक्षशिला आज भी है।
बहुत सारे भारतवासी इस पर गर्व करते हैं। हमनें किसी पर आक्रमण नही किया। किसी को उपनिवेश नही बनाया। तो क्या यह गर्व करने का विषय उचित है।
नैतिक, मनुष्यता कि दृष्टि से यह ठीक लग सकता है।
लेकिन उस काल को देखिये। जब ग्रीक, मंगोल,हूण, तुर्क, मुगल फिर परिवर्तिकाल मे डच, पुर्तगाली, अंग्रेज दुनिया पर आधिपत्य जमा रहे हो। उस समय आपको भी यही करना था। न कि हजारों वर्ष तक रक्षा ही करते अपनी भूमि पर लड़ते रहे।
इस भय में महाभारत युद्ध कि सबसे बड़ी भूमिका है। जो युद्ध से अधिक आंतरिक गृहयुद्ध लगता है। इसने युद्ध से इतना डरा दिया। कि हम बुद्ध को ही पैदा कर सकते थे। और किये भी।
महाशक्तियां अपनी भूमि पर युद्ध नही करती हैं। महान योद्धा सीमाओं को पार करते है।
यह भी मर्यादा ही है। वह युद्ध कि ही क्यों न हो। समुद्र पर सेतु बनायेंगें। जाकर युद्ध करेंगें। लेकिन अयोध्या में नही करेंगें।।

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