भगवान राम के लिये केवट कि अभिव्यक्ति सबसे सुंदर थी।
नाथ आज मैं काह न पावा।
राम इस तरह से व्याप्त है।
सगुण, निर्गुण, द्वैत , अद्वैत सभी में राम है।
जब भी ज्ञानियों के लिये यह दुष्कर हुआ कि वह कैसे ईश्वर को परिभाषित करें, तो उन्होंने राम कह दिया।
भक्त जब भी अपने भाव में विव्हल हुये तो राम कह दिया।
राम इतने सरल , सुगम है कि सब ने उन्हें अपना लिया।
किसी ने कहा मेरे राम,
किसी ने कहा हे राम,
किसी ने कहा सबके राम,
किसी ने कहा अपने अपने राम,
किसी ने कहा राम ही ब्रह्म है।
जब धर्म को लेकर धर्म का संकट खड़ा हुआ।
जब जीवन मूल्यों के प्रति वाद विवाद हुआ।
जब भी शास्त्रों में मतैक्य पैदा हुये।
तब 'राम ' ही मानदंड बनकर समाधान दिये।
योगेश्वर भगवान कृष्ण युद्धभूमि धर्मज्ञ लोगों के बीच कहते है, क्या मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम ने ऐसा नहीं किया था।
युधिष्ठिर, अपने भाईयों से कहते है। भगवान राम भी तो वन को गये थे।
आम्रपाली, भगवान बुद्ध से कहती है कि मर्यादापुरुषोत्तम राम ने अहिल्या का उद्धार नहीं किया था।
वह कौन है, इस पवित्र भूमि पर पैदा हुआ महात्मा, साधु, ऋषि, कवि जिन्होंने राम कि महिमा का वर्णन न किया हो।
डॉ राममनोहर लोहिया कहते थे कि राम के आदर्श के बिना भारत जीवित नहीं रह सकता है।
अटल विहारी वाजपेयी संसद में अपने भाषण के अंत मे कहते है कि भगवान राम ने कहा था मैं मृत्यु को स्वीकार कर लूँगा, लेकिन अपकृति स्वीकार नहीं कर सकता।
हम अपने दोषों, कमियों के साथ उस छत्रछाया में सुरक्षित रहते है। जो मर्यादापुरुषोत्तम द्वारा बनी है।
एक चाय कि दुकान पर बैठा झाड़ू लगाने वाला व्यक्ति कह रहा था।
जब कोई अन्य धर्म का व्यक्ति कहता है।तुम बोलते तो राम राम हो लेकिन राम जैसी मर्यादा भी है।
मैं भावुक हो जाता हूँ कि हमारे राम ऐसे ही कि उनकी प्रंशसा अन्य धर्म के लोग भी करते है। क्या ज्ञानी, क्या अनपढ़ राम सबके एक जैसे है।
उच्चतम न्यायालय राममंदिर कि सुनवाई के आरंभ में कहता है कि आप सभी पक्ष जब अपने तर्क रखें तो ध्यान रखें कि भगवान राम कि मर्यादा पर आँच न आये। यह भारत के लोगों कि भावनाओं पर आघात होगा।
हम अपने श्रेष्ठतम प्रयास को भी कहते है।
यह मेरा गिलहरी जैसा प्रयास है। अर्थात यह राम के चरणों में समर्पित है।।
