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पूरी पोस्ट गम्भीरता से पढ़े, चीन की सभ्यता 5000 साल पुरानी मानी जाती है, लगभग महाभारत काल का समय, तो चीन का उल्लेख महाभारत में क्यों नहीं है?

महाभारत काल में भारतीयों का विदेशों से संपर्क, प्रमाण जानकर चौंक जाएंगे।

युद्ध तिथि: महाभारत का युद्ध और महाभारत ग्रंथ की रचना का काल अलग अलग रहा है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने की जरूरत नहीं। यह सभी और से स्थापित सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व को हुआ हुआ। भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ। महाभारत काल वह काल है जब सिंधुघाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी।

विद्वानों का मानना है कि महाभारत में वर्णित सूर्य और चंद्रग्रहण के अध्ययन से पता चलता है कि युद्ध 31वीं सदी ईसा पूर्व हुआ था लेकिन ग्रंथ का रचना काल भिन्न भिन्न काल में गढ़ा गया। प्रारंभ में इसमें 60 हजार श्लोक थे जो बाद में अन्य स्रोतों के आधार पर बढ़ गए। इतिहासकार डी.एस त्रिवेदी ने विभिन्न ऐतिहासिक एवं ज्योतिष संबंधी आधारों पर बल देते हुए युद्ध का समय 3137 ईसा पूर्व निश्चित किया है। ताजा शोधानुसार ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। तो यह तो थी युद्ध तिथि। अब जानिए महाभारत काल में भारतीयों का विदेशियों से संपर्क।

महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत: 16 महाजनपदों (कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स, कोशल, मल्ल, काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चे‍दि, मत्स्य, अश्मक, अवंति, गांधार और कंबोज) के अंतर्गत 200 से अधिक जनपद थे। दार्द, हूण, हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, शल्य, यवन, किरात, निषाद, उशीनर, धनीप, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालव, कलिंग, कर्णाटक, पांडय, अनूप, विन्ध्य, मलय, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान सीस्टान सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र, सिंहल, आभीर अहीर, तंवर, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ लगभग 200 जनपद से अधिक जनपदों का महाभारत में उल्लेख मिलता है।

महाभारत काल में म्लेच्छ और यवन को विदेशी माना जाता था। भारत में भी इनके कुछ क्षेत्र हो चले थे। हालांकि इन विदेशियों में भारत से बाहर जाकर बसे लोग ही अधिक थे। देखा जाए तो भारतीयों ने ही अरब और यूरोप के अधिकतर क्षेत्रों पर शासन करके अपने कुल, संस्कृति और धर्म को बढ़ाया था। उस काल में भारत दुनिया का सबसे आधुनिक देश था और सभी लोग यहां आकर बसने और व्यापार आदि करने के प्रति उत्सुक रहते थे। भारतीय लोगों ने भी दुनिया के कई हिस्सों में पहुंचकर वहां शासन की एक नए देश को गढ़ा है, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड इसके बचे हुए उदाहरण है। भारत के ऐसे कई उपनिवेश थे जहां पर भारतीय धर्म और संस्कृति का प्रचलन था।

ऋषि गर्ग को यवनाचार्य कहते थे। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन की आदिवासी पत्नी उलूपी स्वयं अमेरिका की थी। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी कंदहार और पांडु की पत्नी माद्री ईरान के राजा सेल्यूकस (शल्य) की बहिन थी। ऐसे उल्लेख मिलता है कि एक बार मुनि वेद व्यास और उनके पुत्र शुकदेव आदि जो अमेरिका मेँ थे। शुक ने पिता से कोई प्रश्न पूछा। व्यास जी इस बारे मेँ चूंकि पहले बता चुके थे, अत उन्होंने उत्तर न देते हुए शुक को आदेश दिया कि शुक तुम मिथिला (नेपाल) जाओ और यही प्रश्न राजा जनक से पूछना।

तब शुक अमेरिका से नेपाल जाना पड़ा था। कहते हैं कि वे उस काल के हवाई जहाज से जिस मार्ग से निकले उसका विवरण एक सुन्दर श्लोक में है:- "मेरोहर्रेश्च द्वे वर्षे हेमवँते तत:। क्रमेणेव समागम्य भारतं वर्ष मासदत्।। सदृष्टवा विविधान देशान चीन हूण निषेवितान।

अर्थात शुकदेव अमेरिका से यूरोप (हरिवर्ष) हूण होकर चीन और फिर मिथिला पहुंचे। पुराणों में हरि बंदर को कहा है। वर्ष माने देश। बंदर लाल मुंह वाले होते हैं। यूरोपवासी के मुंह लाल होते हैं। अत:हरिवर्ष को यूरोप कहा है। हूणदेश हंगरी है यह शुकदेव के हवाई जहाज का मार्ग था।... अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन, सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ हिन्दू धर्म समान हैं। जम्बू द्वीप के वर्ण में अमेरिका का उल्लेख भी मिलता है। पारसी, यजीदी, पैगन, सबाईन, मुशरिक, कुरैश आदि प्रचीन जाति को हिन्दू धर्म की प्राचीन शाखा माना जाता है।

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