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जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ।। पोस्ट३२१, बालकाण्ड दोहा ६३/१-४, दक्ष यज्ञ मे सती का क्रोध।
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा।
कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।।
सो फल तुरत लहब सब काहूॅं।
भली भाॅंति पछिताब पिताहूॅं।।
संत संभु श्रीपति अपबादा।
सुनिअ जहाॅं तहॅं असि मरजादा।।
काटिअ तासु जीभ जो बसाई।
श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।।
भावार्थ:- सती ने दक्ष यज्ञ की सभा में क्रोध पूर्वक कहा - हे सभासदों और सब मुनिश्र्वरों! सुनो। जिन लोगों ने यहाॅं शिवजी कि निन्दा की या सुनि है, उन सबको उसका फल तुरंत ही मिलेगा और मेरे पिता दक्ष भी भली भाॅंति पछतायॅंगे।जहाॅं संत, शिवजी और लक्ष्मीपति विष्णु भगवान की निन्दा सुनी जाय वहाॅं ऐसी मर्यादा है कि यदि अपना वश चले तो निन्दा करने वाले की जीभ काट लें और नहीं तो कान मूॅंदकर वहाॅं से भाग जाय।
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