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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏
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रामसखाँ तेहि समय देखावा।
सैल सिरोमनि सहज सुहावा॥
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जासु समीप सरित पय तीरा।
सीय समेत बसहिं दोउ बीरा॥
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भावार्थ:-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि रामसखा निषादराज ने उसी समय स्वाभाविक ही सुहावना पर्वतशिरोमणि कामदगिरि दिखलाया, जिसके निकट ही पयस्विनी नदी के तट पर सीताजी समेत दोनों भाई निवास करते हैं।
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देखि करहिं सब दंड प्रनामा।
कहि जय जानकि जीवन रामा॥
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प्रेम मगन अस राज समाजू।
जनु फिरि अवध चले रघुराजू॥
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भावार्थ:-सब लोग उस पर्वत को देखकर 'जानकी जीवन श्री रामचंद्रजी की जय हो।' ऐसा कहकर दण्डवत प्रणाम करते हैं। राजसमाज प्रेम में ऐसा मग्न है मानो श्री रघुनाथजी अयोध्या को लौट चले हों।
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भरत प्रेमु तेहि समय जस
तस कहि सकइ न सेषु।
कबिहि अगम जिमि ब्रह्मसुखु
अह मम मलिन जनेषु॥
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भावार्थ:-भरतजी का उस समय जैसा प्रेम था, वैसा शेषजी भी नहीं कह सकते। कवि के लिए तो वह वैसा ही अगम है, जैसा अहंता और ममता से मलिन मनुष्यों के लिए ब्रह्मानंद है।
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वंदउ राम लखन वैदेही।
जे तुलसी के परम सनेही॥
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अनुज जानकी सहित निरंतर।
बसउ राम नृप मम उर अंतर॥
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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏

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