1 y - Traduzir

सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म की महिमा का गायन कर रही है!
सम्पूर्ण प्रकृति ब्रह्म की सत्ता का प्रमाण है!
जो जीव इस सत्य को जान लेता है,वह उस ब्रह्म से युक्त हो जाता है!
फिर वह नहीं उस जीव को माध्यम् बनाकर सत्य ही अपने होने का प्रमाण उसके मुख से देता है!
अर्थात वह उस जीव के मुख से बोलने लगता है!
किन्तु अहँकार की व्याधि से ग्रस्त मानवों को उसके सत्य से बहुत भय उत्पन्न होता है!
जिससे वह लोग उस सत्यस्वरुप ब्रह्म से मिलकर अपने अहँकार की व्याधि से मुक्त कैसे हुआ जाय!
यह नहीं पूछते हैं!
बल्कि उसके मुख को बन्द करने का प्रयास करते हैं!
किन्तु सत्य जिस देह से,जिस मुख से प्रकट हो रहा है वह मुख व देह अहँकार नष्ट व बन्द कर सकता है!
पर सत्य को प्रकट होने से रोकने की क्षँमता अहँकार में नहीं है!
क्योंकि अहँकार की सीमा है,सत्य की कोई भी सीमा नहीं है!
सत्य कहीं से भी बोल सकता है! किसी के भी माध्यम् से बोल सकता है! उसे उसकी ही अभिव्यक्ति प्रकृति से निर्मित यंत्रों से बोलने के लिए अहँकार की नहीं बल्कि अनुरागी मन की आवश्यकता है!
इसलिए परमात्मा का भक्त हुँ एैसे अहँकारी नहीं बल्कि परमात्मा का अनुरागी हुँ एैसा भक्त बनना चाहिए..ऊँ नमः गुरुदेवाय।

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