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मन में उठी तरंग गयी तुम तक जब जोगन, अट्टहास कर मुंह खुल गया जैसे चली हो ठंडी पवन... राही
राहों में वह सांझ तुम्हैं देखा तुम आई, समीप से निकली सुगंध फैली झीनीं सी भरा पूरा है यौवन!!! राही
मेरी राही जभी बराबर से निकली अंगड़ाई में, होंठ भरे थे मधुरस की चिकनाई में...
मगर झुका के नयन बनी मासूम मेरे मन में बसी, मैं देखूँ टकटकी लगाए चंचल मन!!!
राही

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