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रामजी की सेना का अद्भुत वृतांत ✍️चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे॥
✍️कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥
✍️ चारों दिशाओं से हाथी चिंग्घाड़ने लगे, पृथ्वी डोलने लगी, पर्वत काँपने लगे और समुद्र खलबला उठे। गंधर्व, देवता, मुनि, नाग, किन्नर सब के सब मन में हर्षित हुए कि अब हमारे दुःखों का अंत निश्चित है। करोड़ों भयानक वानर योद्धा कटकटा रहे हैं और करोड़ों ही दौड़ लगा रहे हैं। 'प्रबल प्रताप कोसलनाथ श्री रामचंद्रजी की जय हो' ऐसा जयघोष करते हुए वे उनके गुणों का उद्घोष कर रहे हैं॥
✍️ दीपक शर्मा पारीक

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