यूं ही नहीं जागती है रात भर ये आंखें मां-पापा को संघर्षों से जूझते देखा है,
मैने देखा है बदलते रिश्तों को यूं बेवजह ही अपनो को रूठते देखा है,
गैर भी तुम्हारे होते हैं समय सही रहता है जब, कमज़ोर वक्त में मैंने रिश्तों को टूटते देखा हैं,
अकेले चले जब रास्तों पर, तो अंधेरा भी गहराया था उस अंधेरे में मैंने, साया भी छूटते देखा है !
सुप्रभात दोस्तों
