इस घटना ने अन्दर से बहुत आहत किया है ....
यह पागल नहीं थे ...अपना कमाते थे ....अपना खाते थे... मजदूरी करके पसीना बहाकर अपना पेट पालते थे ...
एक लम्बी उम्र ली थी बहुत सारे अनुभव लिए जीवन के ....मरना तो सीखा ही नहीं होगा इन्होंने ...फिर ये हृदय विदारक वाकयात क्यों कारित हुआ ...
आप कल्पना कर सकते हैं कि इन्हें कितना आहत किया गया होगा ....पूरी उम्र पसीना बहाकर पेट पालने वाले व्यक्ति सहजता से अकाल मृत्यु के बारे में कैसे सोच सकता है ...
ऐसा नहीं है कि इन्होंने खुलकर अपनी पीड़ा जाहिर नहीं की....हजारों बार समझाइश की ....पर कलयुगी मोबाइली मानव कहां किसी की सुनता है ...
हमारे घर परिवार में भी हमारे आसपास भी हम ....छोटे बड़ों को आजकल पूरे दिन मोबाइल पर अंगूठा घिसते देखते हैं ...कैसे अपने जीवन की व्यावहारिकता को भूलकर ...अपने मानव होने के अर्थ को भूलकर ..अपनी अमूल्य ऊर्जा को ...बकवास कार्य में निवेश करते हैं ...और हम जो पूरे पूरे दिन देखते हैं करते हैं वही तो अपनी आदतें बनती है ...और इन आदतों का एक परिणाम यह घटना है ....
मीम्स.. रील्स ...बिना किसी अच्छे उद्देश्य के ..सिर्फ मनोरंजन के लिए ...वाह! कितने बकवास माहौल को हम अपनी भावी पीढ़ी को परोस रहे हैं ...इससे ही तो बड़े बड़े आर्यभट्ट निकलेंगे ...
ये जो लोग अपना मोबाइल की इन गतिविधियों में अपने जीवन को घोल रहे हैं और किसी निर्दोष के हत्यारे बन रहे हैं ....उनके लिए एक ही बात है - तुम चरक सुश्रुत आर्यभट्ट वराहमिहिर की संतानें तो नहीं हो ...और न कभी बन सकते हो ...न तुम्हारी आने वाली पीढ़ी बन सकती है ...खाने पीने के लाले न पड़ जाएं ....ऐसे हालात इसी जीवन में तुम देखने वाले हो ।।।
ये बुजुर्ग मेरे कुछ नहीं लगते ....पर मैने इनका स्वाभिमान देखा है इनका मेहनतकश जीवन देखा है ...और तुम जैसों से लाख बेहतर है ....
मैंने अपने अन्दर के भाव लिखे हैं ....जो आजकल महसूस करता हूं ये सब देखकर ...
कि बिना किसी उत्पाद ...बिना किसी क्रिएटीविटी.... बिना किसी अच्छे उद्देश्य... के इंसान ये सब कैसे वातावरण का शिकार होता जा रहा है ।
आगे नि:शब्द हूं
