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🌹 🌷 ।। श्री ।। 🌷 🌹
जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ पोस्ट ३८१, बालकाण्ड दोहा ८३/१-४, कामदेव ने कहा।
तदपि करब मैं काजु तुम्हारा।
श्रुति कह परम धरम उपाकारा।।
पर हित लागि तजइ जो देही।
संतत संत प्रसंसहिं तेही।।
अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई।
सुमन धनुष कर सहित सहाई।।
चलत मार अस हृदय बिचारा।
सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा।।
भावार्थ;- कामदेव ने कहा - तथापि मैं तुम्हारा काम तो करुंगा, क्यों कि वेद दूसरे के उपकार को परम धर्म कहते हैं। जो दूसरे के हित के लिये अपना शरीर त्याग देता है, संत सदा उसकी बड़ाई करते हैं। ‌यह कह और सब को सिर नवाकर कामदेव अपने पुष्प के धनुष को हाथ में लेकर वसन्तादि सहायकों के साथ चला। चलते समय कामदेव ने हृदय में ऐसा विचार किया कि शिवजी के साथ विरोध करने से मेरा मरण निश्चित है।
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