हमारा संघर्ष आपसी नही होना चाहिए बल्कि भविष्य में आने वाले खतरों ओर उन्हें पैदा करने वालो से होना चाहिए।
वास्तव में बुजुर्गो,मां बाप,चाचा ताऊ,पत्नी,बेटा बेटी,रिश्तेदारों,पड़ोसी,जानकारों,दोस्तों के साथ मे हम जो कुछ है वही तो समाज है। समाज अपने में कुछ भी नही है। जो आपने ओर हमने अपने सम्बन्धो में बनाया वही तो समाज है। समाज हमारी अपनी तमाम मानसिक अवस्थाओं का व्यवहार है।
जब तक सबके साथ सम्बंध में हम खुद को नही समझ पाते,हम उग्रता,द्वेष,विनाश,डर ओर मूर्खताओं का कारण बने रहेंगें।खुद को समझने के लिए समय की जरूरत नही होती।हम ठीक इसी पल खुद को समझ सकते है। यदि हम खुद को कल समझेंगे तो हम अव्यवस्था ओर द्वेष ही पैदा करेंगे।हमारा कार्य नुकसानदेह होगा।समझ तो तुरंत इसी पल होती है। जब आपका किसी चीज में इंटरेस्ट होता है तो आप उसे तुरंत करते है। वहां तुरंत बदलाव आ जाता है।
छोटी लड़ाइयों में संयम रखो मर्जी से हार जाओ। बड़े मुद्दों पर सूरमा बन जाओ।जिसमे छोटी बातों को अनदेखा करने अनसुना करने का संयम है वही बड़े युद्धों में सूरमा हो सकता है। जिसने अपनी सूरमाई गुर्गों के सामने दिखा दी तो वो असल मुद्दों पर बुरी मार खाएगा।
सारी तो तुम्हारी ताकत अपनो से उलझने में खत्म हो जाती है। जिंदगी की असल चुनौतियों का सामना कैसे करोगे।दिन भर उलझे ही रहते हो। घर मे,परिवारो में,खेत मे,गांव की बैठकों में,दोस्तो में,सामाजिक कार्यक्रमो में,चले आ रहे थे किसी ने पद,कद ओर मतलब की बात कर दी तो आपने मुद्दा खड़ा कर दिया ।दिन वर दिन टुच्ची बातों पर आपसी मनमुटावों में खुद को बर्बाद कर रहे हो।असल लड़ाई कैसे लड़ोगे।असल लड़ाई लड़ सके इसके लिए अपने दिमाग,अपनेपन की ताकत को समझो अपनो को इकट्ठा रखो।जो खतरे भविष्य के है उनसे टकराने लायक चेतना जगाओ।
जरूरी नही कोई पद या ऊँचे कद वाला आदरणीय हो उसकी चेतना का स्तर देखो।किसकी बात सुननी है किसकी बात नही सुननी है।
