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जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ पोस्ट ४१७, बालकाण्ड दोहा ९३/छंद, हिमाचल की शोभा।
लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही।
बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही।।
मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं।
बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं।।
भावार्थ:- हिमाचल कि सुन्दरता देख कर ब्रम्हा की निपुणता सचमुच तुच्छ लगती है। वन, बाग़, कुएं, तालाब, नदियाॅ सभी सुन्दर है; उनका वर्णन कौन कर सकता है? घर - घर बहुत से मंगल सूचक तोरण और ध्वजा - पताकाएं सुशोभित हो रही हैं। वहाॅं के सुन्दर और चतुर स्त्री-पुरुषों की छबी देख कर मुनियों के भी मन मोहित हो जाते हैं।
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