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निर्मल वर्मा का अंतिम अरण्य पढ़ रहा हूँ।चार अध्याय पूरे हुए हैं। कवर पेज को देखकर लगता है कि लेखक के पास की खाली जगह पाठक के लिए ही है। जहाँ वे अपने पाठक को हाथ पकड़कर बैठा लेते हैं और पाठक के पास न इतना साहस होता है और न उसे ज़रूरत महसूस होती है कि वहाँ से उठ जाए। यही ख़ासियत निर्मल वर्मा को निर्मल वर्मा बनाती है। ऐसा लगता है जैसे हम किसी शांत नदी में बहती नाव पर सवार हैं और नाविक उसे मंज़िल तक लेकर जा रहा है। नाविक ने जैसे यक़ीन दिलाया है कि आप चिंता न करें, मंज़िल आपकी ही होगी। न कोई शोरगुल न कोई माँसलता। कितना धाराप्रवाह लिखते हैं। अद्भुत लेखक हैं निर्मल वर्मा।

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