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🌹 🌷 ।। श्री ।। 🌷 🌹
जय सियाराम सुमंगल सुप्रभात प्रणाम बन्धु मित्रों। राम राम जी।
श्रीरामचरितमानस नित्य पाठ पोस्ट ४६२, बालकाण्ड दोहा १०५/५-८, शिवजी का वर्णन।
निज कर डासि नागरिपु छाला।
बैठे सहजहिं संभु कृपाला।।
कुंद इंदु दर गौर सरीरा।— at Hyderabad Chappal Bazar Kachiguda.
भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा।
तरुन अरुन अंबुज सम चरना।
नख दुति भगत हृदय तप हरना।।
भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी।
आननु सरद चंद छबि हारी।
भावार्थ:- शिवजी उस वट वृक्ष के नीचे अपने हाथ से बाघाम्बर बिछाकर कृपालु शिवजी वहाॅं बैठ गये। कुन्द के पुष्प, चन्द्रमा और शंख के समान उनका गौर शरीर है।बडी लंबी भुजाऐं है और वे वल्कल वस्त्र धारण किये हुए है। उनके चरण नये लाल कमल के समान है, नखों की ज्योति भक्तों के हृदय का अंधकार हरने वाली है। साॅंप और भस्म उनके भूषण है और उन त्रिपुरासुर के शत्रु शिवजी का मुख शरद् पूर्णिमा के चन्द्रमा की शोभा को भी फीका करने वाला है।
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