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"हर घर में पेड़, हर गाँव में बगीचा।" - यह केवल विचार नहीं, मैसूर के हैदर अली खान का सपना है।
मैसूर के तिलकनगर के ईदगाह मैदान में उन्होंने 313 पेड़ों से एक ऐसा प्राकृतिक शामियाना बनाया है, जिसकी छांव में 12,000 लोग आराम से बैठ सकते हैं। 65 साल के हैदर अली सिर्फ पेड़ लगाते ही नहीं, बल्कि अपनी खास तकनीक से उन्हें छतरी और पंडाल का आकार देते हैं।
उनका यह सफर 1999 में ईदगाह मैदान से ही शुरू हुआ था, जहां उन्होंने पहली बार पेड़ों को इस रूप में उगाया। शादी के मंडप से प्रेरणा लेकर उन्होंने यह तकनीक विकसित की। अब तक, उन्होंने 2000 से ज़्यादा पेड़ लगाए हैं, जो आज भी जीवित हैं।
राजीवनगर के रहने वाले हैदर अली एक उम्दा कलाकार भी हैं, और दिल में हमेशा से समाज के लिए कुछ करने की इच्छा रखे हुए थे।
"1980 के दौर की बात है, मैं एक Machinery Engineer के तौर पर कोल्हापुर की एक कॉटन फैक्ट्री में काम करता था। एक दिन मैं कुछ सामान लेकर वर्कशॉप से फैक्ट्री जा रहा था। तभी मुझे थकान लगी तो एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उस पेड़ की छाँव में बैठकर मुझे बेहद शांति और सुकून मिला। मैं जैसे मंत्रमुग्ध ही हो गया। मैं हमेशा सोचता था कि मुझे लोगों और समाज के लिए कुछ करना है। उस समय यह नहीं मालूम था कि क्या करना है।"
1998 में जब वह अपने घर मैसूर लौटकर आये तो ईदगाह मैदान में पेड़ लगाने शुरू कर दिए। जब ये पेड़ बड़े होने लगे तो हैदर ने लोगों को इनके नीचे बैठे या आराम करते हुए देखा। सारे पेड़ एक-दूसरे के पास-पास भी थे; यहाँ से उन्हें इन्हें जोड़कर 'शामियाना' बनाने का ख्याल आया।
बिना एक भी डाली काटे, और बिना किसी मशीन के, केवल एक सुतली से उन्होंने पेड़ों को आपस में बाँधना शुरू किया और इस तरह मैदान का नज़ारा ही बदल गया।
खान साहब पिछले 20 सालों में, ईदगाह मैदान के अलावा, सड़कों के किनारे, स्कूलों के कैंपस में 2,262 पेड़ लगा चुके हैं। आज भी वह अपनी Bajaj M 80 Scooter से दो स्टील के स्टूल और एक रस्सी लिए कहीं भी पेड़ों को बांधकर शामियाना बनाते नज़र आ जाएंगे।

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