किसी गांव मे एक चित्रकार रहता था, जो बहुत ही जीवंत चित्रकारी करता था। जिसके लिए वो अथाह मेहनत भी करता था। अपने बनाये चित्रों को बाजार में बेच आता, जिससे अच्छी कमाई हो जाती थी। उसके जीवन में उसकी 8 वर्षीय बेटी के अतिरिक्त और कोई नही था।
अपनी बेटी से वह बहुत स्नेह करता था। साथ ही उसे अभी से चित्रकारी का अभ्यास भी कराता था। बेटी पिता के सानिध्य में जल्दी ही अच्छी चित्रकारी करने लगी।
प्रत्येक बार वह अपनी बनायी चित्रकारी पिता को हर्षित होकर दिखलाती। और पिता उसकी चित्रकारी देखकर बहुत खुश होते, मगर हर बार कुछ न कुछ कमी बतला देते, "बहुत बढ़िया बनाया है तुमने बेटी! किंतु थोड़े और सुधार की आवश्यकता है।"
पिता की बात सुनकर बेटी पुनः सुधार करने लगती। और इस तरह सुधार करते हुए उसके चित्र उसके पिता से भी कहीं ज्यादा सुंदर और सजीव बनने लगे।
और ऐसा समय आ गया की बाजार में लोग बेटी के बनाये चित्रों को ज्यादा पैसा देकर खरीदने लगे, जबकि पिता की तस्वीरों कोअभी भी पहले वाली कीमत ही मिलती थी। लेकिन पिता अब भी बेटी के द्वारा बनाई गई तस्वीरों में कोई कमी निकाल कर सुधारने बोल देता।
और एक दिन बाजार में एक व्यक्ति ने चित्रकार से कहा कि, "मैं आपकी बेटी द्वारा बनाये तस्वीरों से बहुत प्रभावित हुआ हूँ, अतः उसकी पेंटिग्स की एग्जीबिशन लगाना चाहता हूं। इसके लिए आपको उचित दाम भी दूंगा'।यह बात सुनकर पिता और बेटी बहुत हर्षित हुए।
अब बेटी और भी ज्यादा समय चित्रकारी करने में लगाने लगी। लेकिन उसके पिता अब भी उसकी चित्रकारी में कोई न कोई कमी बताकर सुधार करने बोल देते थे।
लेकिन अब बेटी की सब्र का बांध टूट चुका था। वो अपने पिता से बोली, " पिताजी! चाहे मैं कुछ भी बना दूं लेकिन आपको सदा ही उसमें कोई न कोई कमी दिख ही जाती है। अगर आपको चित्रकारी की इतनी अच्छे से समझ हैं तो स्वयं की चित्रकारी को क्यों नहीं बेहतर कर लेते है?, आपको ज्यादा आवश्यकता हैं सुधार की। क्योकि आप की बनाई तस्वीर आज भी उसी पुराने दाम पर बिकती है।
जबकि मेरी बनाई तस्वीर हर बार ऊंचे दाम पर बिकते है। और अब तो मेरी बनाई तस्वीरों का एग्जीबिशन भी लगने लगा हैं। तो कृपया अब मुझे सलाह देना और कमियां निकलना बंद करें।"
पिता ने बेटी की बात सुनकर आगे से उसे सलाह देना बंद कर दिया।
कुछ दिन तो बेटी के दिन खुशी में बीते, अब उसे रोकने टोकने वाला कोई न था। अपनी चित्रकारी पर मुग्ध होकर वो बिना पिता को दिखलाए ही तस्वीरें बाजार में बेचने हेतु भेजने लगी।
फिर धीरे धीरे उसे ये अहसास होने लगा कि अब उसके तस्वीरों की प्रशंसा कम होने लगी है। साथ ही उनकी कीमत में भी कमी आ रही है। इस चिंता में उसकी चित्रकारी भी प्रभावित होने लगी। परिणामस्वरूप,
अब उसके बनाये चित्रों में जीवंतता नहीं दिखती थी।
उसे कुछ समझ नही आ रहा था, कि ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर में एक दिन उसने अपने पिता से समस्या बताई," पिताजी! मैं कुछ दिनों से बहुत परेशान हूं,
मेरी कोई भी तस्वीर पहले जितने उच्च मूल्य पर नही बिक रही, तथा इसकी लोकप्रियता भी कम हो रही। एक कलाकार के लिए ये बहुत तनावपूर्ण बात है कि लोग उसकी कला की प्रशंसा न करे।
मैंने तो अपनी चित्रकारी में कोई कमी नहीं की। हमेशा अथक प्रयास करने की ही कोशिश की हैं।
जब मैं सन्तुष्ट होती हूं तभी उसे बाजार में बेचने हेतु भेजती हूं।"
पिता ने बेटी की बातों को बड़ी ही धैर्यता पूर्वक सुना,
और फिर उसे समझाया, "मैं जानता हूँ कि, तुम बहुत मेहनत और एकाग्रता से चित्रकारी करती हो, और सच तो ये हैं कि तुम मुझसे भी अच्छी चित्रकार हो।
मैं अक्सर तुम्हें सलाह देता था, और बेहतर करने की। ऐसा नही है की मेरे सलाह के कारण तुम्हारे चित्र बेहतर बनते थे, लेकिन जब तुम्हारी चित्रकारी में कमियां देख तुम्हे सही करने को कहता था तब तुम बनायीं तस्वीर से संतुष्ट नही होती थी,और तुम खुद को बेहतर करने की और अधिक कोशिश करती थी। और वही बेहतर बनाने की कोशिश तुम्हारी सफलता का कारण था। लेकिन जब से तुम अपने काम से संतुष्ट होने लगी, तुमने और बेहतर करने का प्रयास भी बंद कर दिया। लेकिन लोग हमेशा तुमसे सबसे बेहतर तस्वीर की उम्मीद करते है। और यही कारण है कि अब तुम्हारी चित्रों की तारीफ नही होती और न ही उनके ज्यादा दाम मिलते है |
बेटी को बात समझ आई, और उसने अपने पिता से पूछा, "आप ही बताइये कि अब मुझे क्या करना चाहिए?"
पिता ने कहा, "बहुत सरल है बेटी! कभी भी सन्तुष्ट मत हों, इससे और बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी। और ज्यादा बेहतर करने के प्रयास में तुम अपने चित्र को सबसे सुंदर, ख़ास, और सजीव सा बना पाओगी।
