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🙏मंदिर चाहिये या रोजगार ?🙏
इस प्रश्न में दूषित मानसिकता छिपी है
लेकिन क्या इसका उत्तर वही है, जो हम दे रहे है ?
पिछले दिनों मैं अपने परिवार के साथ मंदिर गया! पूजा से पहले दुकान से प्रसाद लिया , चढ़ाने के लिए माला ली । हम तो तुरंत दर्शन कर लिये , बाकी लोग विधि विधान के साथ पूजा पाठ कर रहे थे।
जिज्ञासु प्रवृत्ति से मैं मंदिर के चारों तरफ घूमने लगा। हर दुकान , हर ठेलिया को देखे कौन क्या बेच रहा है।
फिर सब लोग एक जगह चाट खाये , एक जगह जलेबी , फिर एक दुकान से महिलाओं ने अपने लिए श्रृंगार आदि के सामान लिए फिर आगे आकर सब लोग चाय पीये।
फिर अचानक ध्यान आया यह मंदिर दो से ढाई हजार लोगों को रोजगार दे रहा है। यह काम तो हजार करोड़ लगाकर कोई कम्पनी नहीं कर सकती है।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात है। मंदिर किसको रोजगार दे रहा है ! यह वह लोग है ,जिनके पास किसी संस्थान से डिग्री नहीं है। इतना धन नहीं है कि कोई बड़ा निवेश कर सकें। अर्थव्यवस्था में समाज के निचले स्तर के लोग है।
मंदिर करोड़ो लोगों को रोजगार देते हैं। कैसे ?
१.धार्मिक पुस्तक बेचने वालों को और उन्हें छापने वालों को रोजगार देते हैं।
२. माला बेचने वालों को घंटी-शंख और पूजा का सामान बेचने वालों को रोजगार देते हैं।
३. फूल वालों को माला बनाने और किसानों को रोजगार देते हैं।
४. मूर्तियां-फोटुएं बनाने और बेचने वालों को रोजगार देते हैं।
५. मंदिर प्रसाद बनाने और बेचने वालों को रोजगार देते हैं।
६. कांवड़ बनाने-बेचने वालों को भी रोजगार देते हैं।
७. रिक्शे वाले गरीब लोग जो कि धार्मिक स्थल तक श्रद्धालुओं को पहुंचाते हैं उन रिक्शा और आटो चालकों को रोजगार देते हैं।
८. लाखों पुजारियों को भी रोजगार देते हैं।
९. रेलवे की अर्थव्यवस्था का १८% हिस्सा मंदिरों से चलता है।
१०. मंदिरों के किनारे जो गरीबों की छोटी-छोटी दुकानें होती है उन्हें भी रोजगार मिलता है।
११. मंदिरों के कारण अंगूठी-रत्न बेचने वाले गरीबों का परिवार भी चलता है।
१२. मंदिरों के कारण दिया बनाने और कलश बनाने वालों को भी तो रोजगार मिलता है।
१३. मंदिरो से उन ६५,००० खच्चर वालों को रोजगार मिलता है जो किश्रद्धालुओ श्रद्धालुओं को दुर्गम पहाड़ों पर प्रभु के द्वार तक ले जाते हैं।
१४. भारत में दो लाख से अधिक जो भी होटल हैं और धर्मशालाएं हैं उनमें रहने वाले लोगों को मंदिर ही तो रोजगार देतें हैं।
साभार

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