बहुत बार ऐसा होता है।
हम जानते हैं, जो हम पाना चाहते हैं। उसे पा नहीं सकते हैं। फिर उसे पाने के प्रयास का आनंद लेते हैं। जिसकी अंतिम परिणीति दुख है।
बहुतायत लोग ऐसे हैं। जिनके पैरों में नैतिकता, सही - गलत कि बेड़ियां पड़ी है। वह खोने के दुख से डरते हैं। या इससे डरते हैं कि लोग क्या कहेंगें। जीवन के महान अनुभव से वंचित हो जाते हैं।
वह अनुभव है, वह चाहत जिसे पाना अंसभव है।
हम दुख से डरते हैं, इसके लिये अच्छाइयों का बोझ लाद लेते हैं। यह भी अहंकार ही है। देखो हम कितने अच्छे है। जबकि अंदर मन खंड खंड टूटा है। टूटा हुआ मन, हजार दुखों पर भारी पड़ जाता है।।
