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हम जंहा के निवासी हैं। वही की एक घटना है जिससे सभी परिचित है। थोड़ा बिलंब से इस पर लिख रहें है।
अतुल ने सोशल पर वीडियो बनाकर आत्महत्या किया था।
पूरा घटनाक्रम पुरुष स्त्री में बंट गया। यह अंतहीन बहस है। जो चलती रही, चलती भी रहेगी।
लेकिन इसमें जो स्पष्ट बात सामने आई है। वह यही है कि एक कठोर कानून अत्याचार का अस्त्र बन गया है।
कोई किसी के साथ नही रहना चाहता तो यह कानून आपको बाध्य करेगा कि आप नर्क भरी जिंदगी जिएं या आत्महत्या कर लें।
हम कभी भाई, पिता, बहन , मित्र किसी के साथ नहीं रहना चाहते हैं। यह रिश्तों की जटिलता है। वैसे पत्नी या पति के साथ नहीं रहना चाहते तो इसके लिये मृत्युदंड जैसे कानून क्यों बनाये गये हैं। पति पत्नी का रिश्ता कोई समुद्र मंथन से निकला है। जो टूट गया तो ब्रह्मांड हिल जायेगा।
जैसे दुनिया के अन्य देशों मे सरल कानून हैं। वैसे ही भारत में क्यों नहीं होना चाहिये। आश्चर्य कि बात है पिछले 15 दिन से मीडिया, सोशल मीडिया, सुप्रीम कोर्ट सब में यह बहस का विषय है। लेकिन कानून बनाने वाली संस्था संसद जो इस समय चल भी रही है। उसमें कोई चर्चा नही है। अब संसद मात्र भाषणबाजी का केंद्र बनकर रह गई है। किसी भी गम्भीर विषय पर वहां बात नहीं होती।
संसद अभी चाहे तो कानून को सरल करके इस कानूनी अत्याचार से लाखों लोगों का जीवन बचा सकती है।।