'सच, निष्पक्षता, जूनून'... एक पत्रकार से पूरा समाज और पत्रकारिता धर्म यही तीन चीजें मांगता है। लेकिन इसकी कीमत पत्रकार को चुकानी पड़ती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में 33 साल के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने ये कीमत चुकाई है। नए साल पर जहां पूरी दुनिया जश्न मना रही थी वहीं मुकेश की बेरहमी से हत्या हुई। उनके शव को एक सेप्टिक टैंक में ठूंस दिया गया और ऊपर से उसे पलस्तर से चुनवा दिया गया। मुकेश का गुनाह क्या था? सच दिखाना, भ्रष्टाचार उजागर करना या पत्रकारिता धर्म निभाना?
हर कोई हमसे अपेक्षा करता है कि हम उनकी आवाज बनें। डॉक्टरों का मार्च हो या किसानों का आंदोलन या फिर छात्रों पर हो रहा लाठीचार्ज... हर जगह हाथ में माइक पकड़ा एक पत्रकार निडर होकर खड़ा मिलता ही है। क्या दिन,क्या रात, क्या सर्दी क्या चिलचिलाती धूप... हमारी ड्यूटी है पत्रकारिता धर्म निभाना। इस पत्रकारिता धर्म की कीमत है पत्रकारों की जान! जो पूरे समाज की आवाज बनता है आखिर ये समाज उसकी आवाज कब बनेगा?
