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आखर अर्थ अलंकृति नाना। छंद प्रशासन अनेक बिधाना ॥ भाव भेद रस भेद अपारा। कबित दोष गुण बिबिध प्रकारा॥5॥
नाना प्रकार के अक्षर, अर्थ और अलंकार, अनेक प्रकार की छंद रचना, भावों और रसों के अपार भेद और कविता के भाँति-भाँति के गुण-दोष होते हैं॥5॥
कबित बिबेक एक नहीं मोरें। सत्य कहौँ लिखि कागद कोरें॥6॥
इनमें से काव्य सम्बन्धी एक भी बात का ज्ञान मुझमें नहीं है, यह मैं कोरे कागज पर लिखकर (शपथपूर्वक) सत्य-सत्य कहता हूँ ॥6॥
दोहा :
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक। सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह के बिमल बिबेक ॥१॥
मेरी रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस, जगत्प्रसिद्ध एक गुण है। उसे विचारकर अच्छी बुद्धिवाले पुरुष, जिनके निर्मल ज्ञान है, इसको सुनेंगे ॥9॥
चौपाई :
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा ॥ मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी ॥1।।
इसमें श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन है और अमंगलों को हरने वाला है, जिसे पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं॥1॥

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