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"गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा, कीचहिं मिलइ नीच जल संगा"
साधु असाधु सदन सुक सारीं, सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं"
भावार्थ:- पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता- मैना राम- राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता- मैना गिन- गिनकर गालियाँ देते हैं !
सियापति श्री रामचंद्र की जय
उमापति महादेव की जय
पवनसुत हनुमान की जय
राम राम जी

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