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'मालिका' में 600 वर्ष पूर्व ही कर दिया गया था कल्किजन्म का एक और संकेत, सन् 2004 में हुआ घटित

👉 सेदिन बिरोजा आस्थान छाड़िब भीम सिंहनाद हेब गर्भस्थित शिशु भूमिरे पड़िबे भुबनेश्वरकु यिब ।
तहिँ तिनिरड़ि निठाइ मारिबे शारळा छाड़िबे गादि सिंह दरजारे अन्न लुगापाट लागिब भक्त आदि ।
👉 गुपत गङ्गारु भक्त बाहारिबे सिद्धि खण्डगिरि यहिँ सिद्ध साधुगण पतिङ्कि चाळिबे जय़ दारुब्रह्म कहि ।
बिराट नगरे प्रबेश होइबे बळराम सङ्गे यिबे कळकारखाना शून्य़ भाङ्गियिब गुप्ते केहि न जाणिबे ।
- शिवकल्प नवघण्ट निर्घण्ट

महापुरुष अच्युतानंद दास ने अपने ग्रंथ में लिखा कि कलियुग-अंत में जब ओडिशा स्थित जाजपुर के बिरजा मंदिर में मां 'बिरजा' के नाम से प्रतिष्ठित माता योगमाया की प्रतिमा अपना स्थान छोड़ेंगी तो उसी समय समस्त देवी-देवता कल्कि के धरावतरण तथा धर्मसंस्थापना की सूचना का सिंहनाद कर उठेंगे। यह घटना सन् 2004 में हुई। महापुरुष ने बताया कि इसी के बाद अपनी माता के गर्भ से मानव-शिशु रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा और बाल्यावस्था में ही वे भुवनेश्वर जाकर वहां निवास करेंगे।

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