8 ث - ترجم

मां की बात तो एकबारगी बरदाश्त भी कर लेता पर भाभी का इस तरह से उलाहना देना उसे कतई मंजूर न था. उस का जी करता कि कानों में कोई शीशा पिघला कर भर दे. जहां तक चाय की बात थी, उस ने कभी गरम चाय की डिमांड नहीं की थी. जैसी मिलती वैसी पी लेता. फिर उस के बिस्तर से उठ जाने से कौन से घर के काम फटाफट होने लगेंगे बल्कि और कलह हो जाएगा.
भाभी को वह फूटी आंखों नहीं सुहाता था. वह नहीं समझ पाती थी कि टूर एंड ट्रैवल्स और ट्रेकिंग का काम थका देने वाला होता है. बड़ा भाई कुछ कहना भी चाहता तो पत्नी के सामने उस का मुंह न खुलता था. एक तरह से वह पत्नी की बातों का मूक समर्थन करता था.
मां जानती थी कि मेरा बेटा बिलकुल नालायक तो नहीं लेकिन ऐसे बेटे को लायक भी तो नहीं कहा जा सकता जिस की शादी की चिंता ने ही उस को इतना परेशान कर दिया हो. कितनी कोशिश नहीं की थी मां ने. जगहजगह रिश्तेदारों से कहा था. चिन्ह भेजा था पर कोई लड़की मिली ही नहीं.
एक समय था जब लड़के वालों की तरफ से शादी का प्रस्ताव आना लड़की वाले अपना सौभाग्य समझते थे लेकिन आज गोकुल जैसे कई लड़के इस कसबे में हैं जिन्हें सुंदरता और बुद्धिमत्ता की कसौटी पर कसी जाने वाली तो क्या, साधारण रंगरूप वाली, घरगृहस्थी का ध्यान रखने वाली लड़कियां भी नहीं मिल रहीं. ऐसे में किस का दोष कहा जाएगा. लड़के का ही कहेगा न? क़ाबिल होता तो क्यों न मिलती लड़की...आगे की कहानी पढ़ने के लिए नीचे कमेंट बॉक्स मे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇

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