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लरकोर!
जिस महिला के बच्चे छोटे होते हैं उन्हें लरकोर मेहरारू यानि बच्चों वाली महिला कहते हैं।
लरकोर घर में यूं सिल लोढ़ा, बुकवा, डोकवा, कजरौटा, छोटे छोटे कपड़े, भगई (लंगोट), कथोला, लोला , झुनझुना जैसी चीजें इधर उधर बिखरी हुई मिलेगीं।
हमारे यहां छोटे बच्चों की तेल मालिश दिन भर में कम से कम चार बार और बुकवा भी तीन चार बार लगाया ही जाता था।
छोटे बच्चों की मां पास से गुजर जाए तो उससे आती तेल, बुकवा, दूध की महक बता देती थी कि ये लरकोर हैं।
अबकी तरह उस समय बच्चों को न तो डाइपर पहनाया जाता था, न वाइप्स से साफ किया जाता था, फलां साबुन, फलां तेल जैसे टिट्टिम नहीं थे।
सरसों तेल से रगड़ कर दिन भर में कई बार मालिश होती थी और सुसु पॉटी करने पर पानी से धो दिए जाते थे और दूसरे साफ सुथरे भगई बांधकर नए धुले सूखे कथोले (पुराने कपड़ों का हाथ से बना छोटा सा बिस्तर) पर लिटा दिया जाता था।
लरकोर मेहरारू सारा दिन छोटे बच्चे की तेल, बुकवा की मालिश करने, दूध पिलाने सुसु पॉटी साफ करने, गंदे कपड़े धोने, सुखाने में ही लगी रहती थी।
संयुक्त परिवार होता था। कोई बच्चे को खेलाता था तब उसकी मां जाकर जल्दी से दो लोटा पानी डालकर नहा लेती थी या जल्दी जल्दी टेढ़े मेढे कौर निगल कर भोजन करती थी।
ये छोटे बच्चों की सबसे गंदी आदत है कि जब मां भोजन करने बैठेगी तभी बच्चों को पॉटी करना होता है। बेचारी मां मुंह तक ले गया निवाला थाली में रखकर बच्चे को धोकर साफ करके, दूसरे कपड़े पहनाती है तब तक महाशय को भूख लग जाती है अब पेट खाली किए हैं तो भूख लगना स्वाभाविक ही है।
मां बेचारी या तो आधा पेट खाए रह जाती है या फिर बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाते हुए भोजन करती है।
लड़की से मां बनने का सफर आसान नहीं होता है।
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अरूणिमा सिंह

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