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हमारे त्यौहार और भ्रामक खबरें!

कई सालों से देख रही हूं कि होली, दीपावली, नागपंचमी जैसे त्यौहार आते ही नकली मावे का खौफ हमारे दिल में बैठाने का प्रयास किया जाता है और हम इस खौफ से प्रभावित भी हो रहे हैं।
नकली खोए के भय से हमारे त्यौहार, हमारी परंपरा कहीं न कहीं प्रभावित हो रही है फीकी पड़ जाती है।
लोगो ने होली खेलना छोड़ दिया कहते हैं कि एलर्जी होती है।
गुझिया बनाना छोड़ दिया कहते हैं कि मावा नकली है।

मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जिन शहरों में रात दिन इतनी धूल, मिट्टी, धुएं इत्यादि प्रदूषण से आप जूझते हो तब एलर्जी नही होती है तो होली के रंग, अबीर से क्यों डरना भला!
वर्ष भर सड़े मैदे से बनी सड़क किनारे वाले ठेले से फास्ट फूड खाते हैं, टॉयलेट क्लीनर जितना खतरनाक कोल्डड्रिंक पीते हैं तब क्या आपका पेट सुरक्षित रहता है?
फिर एक दिन अगर नकली मावा ही सही दो चार गुझिया खा लेंगे तो कुछ नहीं होगा।

इसलिए मन में भय बैठाकर त्यौहारों के रंग फीका न करें।
जी भरकर सारे पकवान बनाए, खाए और खिलाए हंसी खुशी खूब जोश से सारे त्यौहार मनाए।

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