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बांस की कोठी!
मोरे पिछवरवा घन बांसवरिया ,
कोयलर लिही है बसेर।
सोवत राजा उठी कय बैठि जायँ,
अनकंय चिरैया कय बोलि।।
हमारे यहां विवाह के एक दिन पहले यानी भत्तवान के दिन एकदम सुबह सुबह सभी स्त्रियां मिलकर भोरहरी न्योतती (गीत गाती) हैं।
ये उसी गीत का अंश है। इस गीत के बाद कुल के जितने लोग गोलोक वासी हो गए हैं उन सभी पितरों को निमंत्रण दिया जाता है।
बांस बहुत एक बहुउपयोगी चीज है। ये घास प्रजाति का माना जाता है। हर गांव में आपको एक दो बांस की कोठी जरूर मिलेगी।
बंसवारी के नीचे से अगर राह गई है तो उधर से गुजर कर देखिए।
ठंडक भरी एकदम घनी छाया और उस के साथ अनगिनत चिड़ियों का कलरव ऐसा परिवेश बना देता है कि जी करता है कि बस अब यहीं ठहर जाएं।
शुभ अशुभ सारे कार्यों में बांस काम आता है।
कांटहवा बांस, बंबू बांस, लाठीहवा बांस जैसी इसकी कई प्रजाति होती हैं और अब तो लोग इतने बड़े बड़े बांस को भी ठिगना करके बोनसाई रूप में घरों में, ऑफिस में रखकर शोभा बढ़ाते हैं।
इस बांस की बनी लग्गी से आने वाले कुछ दिनों में आम तोड़े जाएंगे।
जब गांव में सबके यहां नया नया पक्का मकान बनना शुरू हुआ था तब बांस की बनी सीढ़ियों पर चढ़कर छत पर जाया जाता था।
बांस की बनी बंसखटी चारपाई अब बगीचे में बिछाई जाएगी।

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