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बात बिहार की .. फिसलन भरी जमीन पर टिकने की कोशिश कर रहा है एनडीए ..
"नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेंगे" ऐसा ऊपर से नीचे तक का हरेक भाजपाई बोल रहा है, मगर "जीतने पर नीतीश कुमार जी ही अगले मुख्यमंत्री होंगे " इस सवाल को टाल जा रहा है, भाजपा की मंशा साफ़ है, जिसे बार - बार दुहराने - बताने की जरूरत नहीं ..
मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहने के बावजूद नीतीश कुमार भाजपा की मज़बूरी हैं , इसकी वजह साफ़ है "बिहार में भाजपा के पास कोई ऐसा एक भी चेहरा / बड़ा नेता नहीं है, जिसे पूरे बिहार के लोग जानते भी हों, भाजपा के पास बस एक मोदी नाम का झुनझुना है , जो विधानसभा चुनावों में न तो २०१५ में बजा और ना ही २०२० में "...
अमित शाह की सारी 'चाणक्यगिरी' भी बिहार में कुंद पड़ जाती है , वैसे राजनीति की समझ रखने वाले लोग भली - भांति जानते हैं कि " शाह के पास कोई चाणक्यगिरी नहीं है, शाह का खेल गड़बड़ी - हेराफेरी - धांधली - फरेब व् प्रशासनिक दुरूपयोग के दम पर चलता है "..
नीतीश के चेहरे को आगे कर और चुनावी गड़बड़ी के भरोसे बिहार में अगली सरकार बनाने का मंसूबा पाल रखा है भाजपा ने.. जो किस हद तक सफल हो पाता है , ये देखना दिलचस्प होगा.. !!
वैसे देखा जाए तो वर्त्तमान में बिहार में एनडीए फिसलन भरी जमीन पर किसी तरह से पैर टिकाने की जद्दोजहद से जूझता दिखता है और हाल के दिनों में जिस तरह से नीतीश कुमार जी की उटपटांग हरकतों को एक तमाशे के तौर पर भाजपा के इशारे पर पोसुआ मीडिया के द्वारा उछाला - चलाया गया है, उसको लेकर नीतीश समर्थक मतदाताओं - लोगों में भाजपा के प्रति आक्रोश है .. नीतीश समर्थक मतदाता भी ये भली - भांति समझ रहे हैं कि जीत की स्थिति में भाजपा नीतीश कुमार जी को मुख्यमंत्री कतई बनाने नहीं जा रही और नीतीश समर्थकों की ये समझ उनकी प्रतिक्रियावादी वोटिंग को महागठबंधन के पक्ष में ले जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं ...
( क्रमश: )

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