।।।।।।।।ज्ञान् आर्जनम।।।धन आर्जनम ।।पुन्य आर्जनम।।।।।।।।
।।तु हि तेरा सिल्पकार।।तु हि तेरा रचनाकार तु हि तेरा आधार ।।
।हे इस्वर ।।आप चाहे तो सुर्य कि ताप रुक सकेगि हावा कि बेग थम सकेगि अभि सारा ।धर्ती जल बिन हिन करसक्ते हो पहाड को समथर और समथर को पहाड बना सक्तेहो आप कि सामुन्ने तो स्वोयम भय भि थरथराहट से काम्ता ।।।हे ।। इस्वर आप चाहे तो अभि हमारि प्राण बायु हरण करसक्ते हो ।हे इस्वर काल बाबा कोभि बसमे कर्ने वाले हे प्रेम कि सागर फिर दुस्रे कि उमंग खुसि ।।तो कोसौ दुर कास सारा धर्ति सत्य कि राहपर चले हमे हम्को जगाने वाले तो हरि गुरु सन्त और सत्सङ वा बेदान्ति गुरु हि होङे । धन्य धन्य हो आप कि माया कि बन्धन और सत्य कि बन्धन और मोहिनि माया अब तो माया कि बन्धन सिर्फ आप कि प्रेम से हि जिति जायगि ।।हमे ।।प्रेमि बनादो।।।आप कि प्रेम मे हि ।।आप कि चरण मे हि चारो धाम ।।हे।।।श्री श्री गुरु जि कि चरण मे हि ।।सारा धाम खडा होङे।। गुरु जि कि भुमिका तो सिर्फ आप से मिलाने कि हे ।जिबको ब्रम्ह मे मिलाने वाले ।बाकि आप हि। समालो ।।।जय गुरु देब भगवान ।जय जय श्री राधे।।।।सभि लोग को ।।हार्दिक अपील हार्दिक ।।अनुरोध ।।दुस्रे कि उमंग कभि भङ मत करो।।खुडकि उमंग भताभुङ छताछुल्ल होगा हि।.... सत्यकि राहपर चलो।।सत्यमेहि।।।सारा धर्ती समाहुवा हे।।।सत्यम परम धिमहि।।।ॐ सान्ति राम जपु राम जपु राम जपु बाबरे
