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गंगोत्री में जल भरते समय एक टेक्निकल प्रश्न मन में आया, संभवतः आप लोग उसका उत्तर दे सकें।
मैंने ये पढ़ा है, मैं ये जानता भी हूं वैज्ञानिक रूप से, कि गंगाजल सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक शुद्ध होता है। ये कभी नहीं सड़ता है, क्योंकि ये ऐसी ऐसी पहाड़ियों से बहता हुआ आता है, जहां हजारों चमत्कारिक जड़ी बूटियां होती हैं। चमत्कारिक कई नदियों और सोतों का जल उसमें मिक्स होता रहता है। उन आयुर्वेदिक जंगली पहाड़ी जड़ी बूटियों के कारण ही उसमें जीवनदायक बैक्टीरिया होते हैं और वे बुरे बैक्टीरिया को मारते रहते हैं, जिससे गंगा जल कभी नहीं सड़ता है।
ठीक???
तो प्रश्न यह है कि यदि हम डायरेक्ट गंगोत्री से जल भरते हैं, जहां पीछे ही थोड़ी दूर पर गोमुख ग्लेशियर है, और वहां तक तो न ज्यादा विभिन्न प्रकार की नदियां उस भागीरथी में मिलती हैं, न ही भिन्न भिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां उसमें मिल पाती होंगी।
तो प्रश्न यह है कि जो जल हम लेकर आए हैं, वो तो हरिद्वार और ऋषिकेश की तुलना में हजार गुना स्वच्छ भी है, तो क्या इस जल में भी वही ताकत होगी जो "गंगाजल" में होती है?
या कम ताकत होगी!
या अधिक ही होगी? क्योंकि वहां ऊंचाई पर गंदगियां तो उसमें नहीं मिल पाती हैं।
सुधी जन कृपया इसका उत्तर दें।
वैसे मूल प्रश्न तो मेरा यह है कि हम हिन्दुस्तानियों का मन केवल खुदाई देखने में ही क्यों रमता है?? बताओ... गंगोत्री जाकर भी मेरा ध्यान बार बार इस सुसरी खुदाई करती हुई जेसीबी पर ही अटक रहा था। 😑
साभार सोशल मीडिया 👏

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