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"शक्ति में संयम और विजय में विनम्रता — यही रामराज्य की आत्मा है।"

प्रभु श्रीराम की दिव्य लीला हमें यह सिखाती है कि वास्तविक वीरता केवल युद्ध जीतने में नहीं, बल्कि अपनी शक्ति का संयमपूर्वक और धर्म के अनुसार उपयोग करने में है।

जब रावण जैसे महाबली का वध करने के बाद भी श्रीराम ने गर्व नहीं किया, बल्कि संपूर्ण विनम्रता से माँ सीता को सम्मानपूर्वक स्थान दिया — तब सृष्टि ने जाना कि यह केवल एक राजा नहीं, धर्मस्वरूप ईश्वर हैं।

रामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं:
"रामहि केवल प्रेम पिआरा, जान लेउ जो जाननिहारा।"
प्रभु की महानता उनके प्रेम, क्षमा और विनम्रता में है।

रामराज्य कोई शासन व्यवस्था मात्र नहीं, वह एक ऐसी दिव्य अनुभूति है जहाँ शक्ति धर्म के अधीन होती है, और हर विजय में करुणा की गूंज होती है।

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