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दोहा:
सो तनु धरि हरि, भजहिं न जे नर।
होहिं बिषय रत, मंद मंद तर।।
कांच किरिच बदलें ते लेहीं।
कर ते डारि परस मनि देहीं।।
तुलसीदास जी का यह दोहा मनुष्य जीवन की दुर्लभता और उसकी सार्थकता को दर्शाता है। इसका आध्यात्मिक भावार्थ और रामचरितमानस के आधार पर अर्थ निम्नलिखित है:

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