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*🚩भूत, बाँस और मन🚩*
एक व्यक्ति ने किसी प्रकार एक भूत को पकड़ लिया।
उस भूत में असाधारण बल था—जो कार्य वर्षों में पूरे हों,
वह पलों में संपन्न कर देता था।
उस व्यक्ति ने सोचा, “क्यों न इसे बेचकर कुछ धन अर्जित कर लूं।”
और वह शहर की ओर चल पड़ा।
संजोगवश उसकी भेंट एक बड़े सेठ से हो गई।
सेठ ने जिज्ञासावश पूछा, "भाई! यह क्या है?"
व्यक्ति ने उत्तर दिया, "यह भूत है।
परिश्रम में निष्णात है,
जो भी कार्य दिया जाए,
तुरंत पूरा कर देता है।
समय इसका बंधन नहीं—क्षण भर में वर्षों का काम कर डालता है।"
सेठ को भूत की विशेषताएँ सुनकर लोभ हुआ।
उसने पूछा, "इसकी क्या कीमत लोगे?"
व्यक्ति बोला, "बस पाँच सौ रुपए।"
सेठ ने चकित होकर कहा,
"इतना गुणी भूत और कीमत मात्र पाँच सौ?"
व्यक्ति ने उत्तर दिया, "सेठ जी! गुण तो अनेक हैं,
पर एक दोष भी है—यदि इसे काम न मिले तो यह अपने ही स्वामी को खा जाने दौड़ता है।"
सेठ ने मन ही मन सोचा, “मेरे तो व्यापार के अनेकों धंधे हैं, देश-विदेश तक कारोबार फैला है।
काम की तो कभी कमी नहीं होगी।
यह भूत मेरे लिए वरदान होगा।”
यह सोचकर उसने भूत को खरीद लिया।
भूत ने जैसे ही मालिक बदला,
विकराल रूप धर लिया और बोला
"काम दो! काम दो! काम दो!"
सेठ ने तत्परता से एक के बाद एक दस काम बता दिए।
किंतु भूत की गति तो वायु से भी तीव्र थी।
एक काम बोलो,
उससे पहले ही वह पूरा हो जाए।
सेठ को अब भय होने लगा।
उसी समय सौभाग्य से एक संत सेठ के घर आए।
सेठ ने सविनय हाथ जोड़कर सारा वृत्तांत सुनाया।
संत मुस्कराए और बोले,
"सेठ! समाधान सरल है। उस भूत से कहो कि वह एक लंबा बाँस लाए और आँगन में गाड़ दे।
जब कोई काम हो,
तब उसे आदेश दो।

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