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चांद भी होगा, तारे भी होंगे,लेकिन तुम्हारा दिल न लगेगा...
हर साल MA के बाद कैंपस छोड़कर जाने वाले छात्रों को चुपचाप देखता हूं। रोज रोज दिखने वाले छात्र विदा हो रहें हैं। विश्वविद्यालय मासूमियत का अंतिम पड़ाव है।इसके बाद जगत की निष्ठुरता आरंभ होगी, यह जीवन के वसंत का अंतिम अध्याय है। अब जीवन भर लू के थपेड़ों से ही सामना होगा। एक साख पर साथ बैठने वाले परिंदों का काफिला अब अलग-अलग दिशा में उड़ान के लिए निकलेगा। BA और MA के दिन कितनी जल्दी बीत गए न। ओह,अब सारे संगी छूट जाएंगे।
धीरे-धीरे संकल्प शक्ति कम होगी, आशंका बढ़ती जाएगी। हौसला कम होता जाएगा, मन्नत के धागे बढ़ते जाएंगे।
मंजिल रह रह फिसलती रहेगी, रास्ते लम्बे होते जाएंगे। दोस्तों का कारवां छोटा होगा,अकेलापन सघन।औरों से बातें कम होंगी, स्वयं से संवाद बढ़ेगा। माया से मोह घटेगा , बुद्ध से प्रेम बढ़ेगा। सोचना बढ़ेगा, सोना कम होगा।
असाधारण होने के मौके कम होते जाएंगे, साधारण होने की संभावना बढ़ती जाएगी। आदर्श चूकेगा, यथार्थ हावी होगा। मासूमियत का स्थान सिमटेगा, चालाकियां जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनती जाएगी । भोलापन पीछे रह जाएगा चालबाजी धीरे धीरे जीवन में प्रवेश करेगी। चेहरे पर हँसी कम होगी, माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ेगी। बेफिक्री खत्म , तनाव शुरू। कुछ ही सालों में यथार्थ कल्पना को निगल लेगा। स्वप्न का रंगमहल ढ़हेगा,मकान बनवाने के लिए सीमेंट की चिंता सामने होगी। अधिकार कम होता जाएगा, कर्तव्य बढ़ता जाएगा। वक्त के साथ दिल से आवाज आएगी “इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थ बना कितना हमको"।
रोजगार समाचार के पन्ने प्रेम पत्रों को निगल लेंगे। आलिंगन स्मृति बन जाएगी। चुंबन का रोमांच कम होता जाएगा। “धीरे-धीरे क्षमाभाव समाप्त हो जाएगा/ प्रेम की आकांक्षा तो होगी मगर ज़रूरत न रह जाएगी ।”

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